श्री गिरिधर जी की कुन्डलिया: 1 (नवीन चतुर्वेदी की प्रस्तुति)
सांई बैर न कीजिए, गुरु, पंडित, कवि, यार|
बेटा, बनिता, पौरिया, यज्ञ करामन हार||
यज्ञ करामन हार, राज मंत्री जो होई|
जोगी, तपसी, बैदु, आपकों तपै रसोई|
कह 'गिरिधर' कवि राय, जुगन सों ये चल आई|
इन तेरह कों 'तरह' दियें बन आवै सांई|
भारत भूमि की माटी से उपजे देशी साहित्य, काव्य और संस्कृति का संकलन । भारतीय बोलीयों एवं भाषाओं में देश की माटी से, गॉंव देहात से उपजे , असल भारत का असल साहित्य, असल काव्य असल संस्कृति की झलकी ओर बानगी के लिये यह प्रयास,यह देश के लोगों की मॉंग पर उन्हीं के लिये समर्पित मंच है - भाई नवीन चन्द्र चतुर्वेदी , पंकज त्रिवेदी का धन्यवाद जिनकी प्रेरणा व भागीदारी से हम यह कार्य करने का प्रयास कर सके - नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द'' - प्रधान सम्पादक , ग्वालियर टाइम्स समूह
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